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सोमवार, 26 जुलाई 2010

अंजाम-ए-आशिकी क्या है

वफ़ा में मेरी कसर कोई रह गयी क्या है ,
जब भी पूछा,तो वो बोला,तुम्हें जल्दी क्या है |

लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता  है,
और हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है  |  

ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |

नागहाँ चाँद ढल गया मगर फिर उसके बाद ,
देर तक छाई रही उसकी चांदनी क्या है |

न पूँछ हाल, ये है गर्क-ए-मुहब्बत, इसको-
खबर नहीं की ख़ुदी क्या है बेख़ुदी क्या है |

आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी  क्या है |

अश्क में डूबे हैं अशआर "मिसिर" के लेकिन,
दाद मिलने पे ये चेहरे की ताजगी क्या है  | 

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बे-चेहरा ख़ाब

ये रात
ख़ुद भी नहीं सोती 
करवटें 
बदलती रहती है 
और एक 
बे-चेहरा ख़ाब 
बेचैन-ओ-परेशां 
भटकता रहता है 
करवट-दर-करवट 
ज़िंदगी के तिलस्मी 
आइनाघर में ,
ख़यालों की भीड़ में
गुम हो चुके उस 
चेहरे की खोज में 
जो कभी उसका था !
हरेक आइना 
उसे एक चेहरा 
दिखाता है 
जिसे देख वह कुछ 
ठिठकता है 
मगर फिर 
आगे बढ़ जाता है !
एक रात मैंने उसे 
रोक कर पूछा -
मुद्दतों हुए तुम्हें 
यूहीं भटकते ,
और ये आईने
तुम्हारे चेहरे की 
ठीक ठीक नक़ल भी 
अब तक न बना पाए ,
पुराने पड़ चुके उस
चेहरे को आखिर तुम 
कैसे पहचानोगे ,
अब तक तो 
टूट फूट घिस कर 
कितना कुछ 
बदल चुका होगा वह !
वह बोला -
मेरे चेहरे की पेशानी पर 
मुसीबतों के बोसे का 
स्याह निशान है 
वह न बदला होगा 
उसी से पहचानूँगा 
आम आदमी की
ज़िंदगी के ख़ाब का
चेहरा जो ठहरा !!