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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

धब्बे और खराशें















जो सूरज तुम हमें थमा गए थे

कलई उतार दी है उसकी परिमार्जकों ने ,

धो दिया है तेज़ाब से ,

काले-काले धब्बों ,गहरी ख़राशों से

भर गया है उसका उजला मुँह !




रोशनी देता है अब भी

मगर धब्बों और ख़राशों की

स्याह छाया भी प्रक्षिप्त करता है !




चीजें अब

कटी-पिटी,अधूरी दीखती हैं ,

हमेशा पहचाननें में गलती हो जाती है !




हर जगह और हर चीज में

धब्बे और खराशें भर गयी है !

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