वर्ष बीता ,
आयु का घट
और कुछ रीता ,
अनूदित हो गया कुछ जल
सरल,निश्छल औ' तरल
शुभकामनाओं में !
सजल,श्यामल मेघ-खण्डों ने
ललक ले ली सुलगती रेत,
नदी जिसको छोड़ पीछे
बह गई थी सुखों की अनजान ढालों पर !
उमड़ कर छलक आया है
किन्हीं गहराइयों में मौन बैठा जल !!
कौंधता रह-रह
नदी का स्वप्न आँखों में
पहाड़ों की हठीली ,कठिन ढालों पर !!
क्या नदी, तुम फिर उतर कर आओगी ,
लहरती,किल्लोलती , सिहरन जगाती ,
फिर बहोगी
वक्ष के इस शुष्क मरुथल में ?