LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

वर्ष बीता






वर्ष बीता ,
आयु का घट
और कुछ रीता ,
अनूदित हो गया कुछ जल
सरल,निश्छल औ' तरल
शुभकामनाओं में !

सजल,श्यामल मेघ-खण्डों ने 
ललक ले ली सुलगती रेत,
नदी जिसको छोड़ पीछे 
बह गई थी सुखों की अनजान ढालों पर !

उमड़ कर छलक आया है 
किन्हीं गहराइयों में मौन बैठा जल !!

कौंधता रह-रह 
नदी का स्वप्न आँखों में 
पहाड़ों की हठीली ,कठिन ढालों पर !!

क्या नदी, तुम फिर उतर कर आओगी ,
लहरती,किल्लोलती , सिहरन जगाती ,

फिर बहोगी 
वक्ष के इस शुष्क मरुथल में ?