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मंगलवार, 10 जुलाई 2012

बाज़ार


Monday, July 2, 2012
बादल हैं या 
हवा के जाल फँसी 
ह्वेल  मछलियाँ हैं ,
घसीटता मछुआरा  
ले जाता खैंच 
पश्चिमी बाज़ार 
अरे ! क्या इनको भी
डालेगा बेंच ??

सुबूत


ऐसे भागा 
जैसे गलत पते पर बरस गया हो ,
अपने उस भाई से 
जो सूरज ढके हुए था 
हटने को बोल गया 
ताकि बरसा हुआ पानी 
जल्दी सूख जाए 
और इस तरह उसने 
अपनी गलती का
कोई सुबूत नहीं छोड़ा !

कमजोरी



Saturday, July 7, 2012
बहुत कमजोर हो गई थी वह 
कि 
आधी रोटी 
खाने बाद ही............. मर सकी !

लाल चुन्नी जाग !!



Sunday
इस बार भी आएगा 
वो भेड़िया 
अपने कृपा-हास में दाँत  ,
वरद-हस्त में नाखून 
और 
मधुर शब्दों में 
मसूढ़ों की लालिमा छिपाए 
नन्ही लाल चुन्नी की नानी बनकर 

और शायद इस बार 
एन मौके पर 
कोई लकड़हारा 
उधर से न गुजरे !


Monday, June 25, 2012
मैं उतना ही नहीं हूँ 
जितना आपके सामने बैठा हूँ 
वह भी हूँ 
जो आपके सामने बैठेगा 
कल,परसों,और आगे के दिनों में |


अगर मेरी नाव
अभी भी पानी में है 
रेत पर नहीं ,
तो यकीन मानिए 
बीज  के भीतर मौजूद है 
एक पेड़ ,
पेड़ के भीतर 
जड़ें हैं ,शाखाएँ हैं,पत्ते हैं, 
पत्तों के भीतर पंछी हैं, 
पंछियों के भीतर 
घोंसले हैं 
और घोंसलों में उनके 
अंडे हैं ,बच्चे हैं |

अकारण ही नहीं फूल जाते हैं पेट 
और सिर्फ हवा ही नहीं भरी होती है उनमे 
कुछ है जो कल बाहर आएगा 
और तुम्हें हैरान कर देगा, 
क्या हैरान होने के लिए 
तुम्हारी कोई तैयारी है ?
क्या तुम इस तैयारी की 
कोई ज़रूरत महसूस करते हो?

कुछ लोग ज़रूरत 
तभी महसूस करते हैं 
जब वह उन्हें
कुचल कर आगे निकल जाती है 
लेकिन 
तुम मुझे ऐसे तो नहीं लगते !!

तीन कवितायें




  • Wednesday, June 20, 2012
    ठीक है
    कि जरूरी थी खून की जांच 
    घुस आए रोगाणुओं की पहचान 
    ताकि समय रहते उपचार हो सके !


    लेकिन क्या यह भी जरूरी था 
    कि खून का नमूना 
    सुई की जगह खंजर घोंप कर लिया जाए ?


    अब वह
    तुम्हारी जांच रपट सुनेगा 
    या 
    घाव सिलवाने किसी दर्जी के पास भागेगा ?


    एक सुई के लिए 
    एक घाव को 
    खंजर के खिलाफ कर देना 
    मुश्किल नहीं होता !!

  • Wednesday, June 20, 2012
    उम्मीद 
    यही नाम बताया था 
    उस नाज़ुक-सी लड़की ने |


    बुरी तरह रीझे मन ने कहा --
    " तुम बहुत सुंदर हो "


    सुनते ही अचानक 
    उसका रूप बदलने लगा 
    एक पल में उसकी जगह 
    एक हट्टा-कट्टा आदमी खड़ा था 
    साँवला चेहरा , उड़े-उड़े से बाल
    कमीज के दो बटन खोले 
    इतमीनान से सिगरेट पीता हुआ 
    मेरे तरफ हाथ बढ़ाकर बोला-
    "मुझे विश्वास कहते हैं |"


  • Saturday, June 16, 2012
    शिला के नीचे दबे-दबे छटपटाते हुए 
    कोसते रहते हैं हम 
    या
    रेत का रोना रोते हैं 
    कि  हाथों मे ठहरती ही नहीं ,
    क्या हम 
    शिला को पीस कर 
    रेत मिला कर 
    नदी और समुद्र के  
    एक-एक चुल्लू पानी में गूँथ कर
    एक गीली मिट्टी नहीं बना सकते हैं,
    जिस पर फूल उगाये जा सकें ?


     जिंदगी एक उद्यम है  साथी !!

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