tag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post1038875936223500335..comments2023-05-22T03:23:37.477-07:00Comments on तीन पत्ती: यही जोड़-तोड़अरुण अवधhttp://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-46176067654192479282011-03-25T20:48:57.429-07:002011-03-25T20:48:57.429-07:00आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए
हार्द...आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए <br />हार्दिक आभार !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-23520368588412011232011-02-07T02:20:24.790-08:002011-02-07T02:20:24.790-08:00bahut gehri ***********
wakai ek ek sabd tarif ke ...bahut gehri ***********<br />wakai ek ek sabd tarif ke kabil hai ....<br />badhai sweekar karenamrendra "amar"https://www.blogger.com/profile/00750610107988470826noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-91124262781359106942010-11-29T02:21:20.604-08:002010-11-29T02:21:20.604-08:00कविता में गहराई है,
बात उभर कर आई है.
इस कविता में...कविता में गहराई है,<br />बात उभर कर आई है.<br />इस कविता में अर्थ पिरोने की वाक़ई बधाई है.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-28592021369336678042010-11-26T16:23:07.097-08:002010-11-26T16:23:07.097-08:00लम्बी बातें लंबेधागे दोनो ही उलझते और उलझाते हैं ।...लम्बी बातें लंबेधागे दोनो ही उलझते और उलझाते हैं । आपने धागों के बिंब को बडी खूबसूरती से जीवन दर्शन में इस्तेमाल किया है । मुझे याद आती है बचपन की जब स्वेटर बुनना सीख रही थी (सीख नही पाई ये अलग बात है । तब अधैर्य में आ कर कई बार ऊन को तोड देती । तब दादा कहते धीरज धीरज रखो बहना इतने अधैर्य से काम नही चलता जिंदगी में ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-47481232751202139212010-11-23T21:56:56.375-08:002010-11-23T21:56:56.375-08:00थक-हार हम
इस उलझन से झुंझलाकर,
तोड़ तोड़ धागों को
...थक-हार हम<br />इस उलझन से झुंझलाकर,<br />तोड़ तोड़ धागों को<br />अलग कर डालते हैं ,<br />और यह समझते हैं-<br />विश्लेषण कर लिया ,<br />बात सब समझ ली !<br /><br />वाकई लम्बे धागे ज्यादा दूर तक उलझे रहते हैं...अच्छी रचना है...उलझने-उलझाने वाली। यही जीवन दर्शन है...<br />मेरे ब्लॉग पर आने और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद....आपका ब्लॉग फॉलो भी कर लिया...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-64357600281598322492010-10-22T03:53:33.624-07:002010-10-22T03:53:33.624-07:00बहुत ही सुंदर.
http://sudhirraghav.blogspot.com/बहुत ही सुंदर. <br />http://sudhirraghav.blogspot.com/सुधीर राघवhttps://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-620583669202256942010-10-16T11:28:36.088-07:002010-10-16T11:28:36.088-07:00मिसिर जी मैं तो धागों में उलझती चली गयी .....
छोटे...मिसिर जी मैं तो धागों में उलझती चली गयी .....<br />छोटे छोटे जोडती तो गांठे अधिक पड़ती और बड़े कुछ ज्यादा ही उलझ गए .....<br />आपने पता नहीं कैसे जोड़ लिए ....?<br />हुनर तो है आपके पास .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-14282825630364595822010-10-14T08:04:40.652-07:002010-10-14T08:04:40.652-07:00किन- किन हिस्सों को आपस में जोड़ दें ,
कहीं फिर झु...किन- किन हिस्सों को आपस में जोड़ दें ,<br />कहीं फिर झुंझलाकर और भी न तोड़ दें ,<br />या कि इन्हें घबराकर ऊबें और छोड़ दें !<br /><br />लेकिन हमने धीरज से काम लिया-<br />कौन जान पायेगा ?<br />किसी को किसी में जैसे-तैसे जोड़ दिया,<br />रील एक बना ली ,<br />sunder bhav .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-43073397022691208352010-10-11T06:52:56.114-07:002010-10-11T06:52:56.114-07:00थक-हार हम
इस उलझन से झुंझलाकर,
तोड़ तोड़ धागों को
...थक-हार हम<br />इस उलझन से झुंझलाकर,<br />तोड़ तोड़ धागों को<br />अलग कर डालते हैं ,<br />और यह समझते हैं-<br />विश्लेषण कर लिया ,<br />बात सब समझ ली !<br /><br /><br />behtareen rachna likhi sir aapne....<br />"kabhi kabhi yunhi humne apne ji ko behlaaya hai<br />jin baaton ko khud nahi samjhe auron ko samjhaaya hai "<br /><br />bahut hi khoobsoorat baat kahi aap ne<br />badhaaichakresh singhhttps://www.blogger.com/profile/02320995388295003863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-18985188837322756372010-10-05T08:01:29.355-07:002010-10-05T08:01:29.355-07:00!!!!!!
Ashish!!!!!!<br />Ashishसूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼https://www.blogger.com/profile/11282838704446252275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-85686084104435911462010-10-04T17:36:02.083-07:002010-10-04T17:36:02.083-07:00आदरणीय अरुण मिश्र जी 'मिसिर'
नमस्कार...<b><i>आदरणीय अरुण मिश्र जी 'मिसिर' </i></b> <br />नमस्कार !<br />बहुत दार्शनिक अंदाज़ में धागों की जोड़-तोड़ के बहाने ज़िंदगी के रहस्य सामने लाने के सार्थक प्रयास हैं आपकी कविता में । बधाई !<br /> <br /><b>लम्बे लम्बे धागे यदि<br />आपस में उलझ जाएं -<br />सुलझाना मुश्किल है ! </b> <br />बहुत सच कहा है …<br /><b> </b> <br />शुभकामनाओं सहित<br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-11168124689889415332010-10-04T09:33:47.589-07:002010-10-04T09:33:47.589-07:00satya ko itne sral tareeke se bhi abhivyakt kiya j...satya ko itne sral tareeke se bhi abhivyakt kiya jaa sakta hai. "MITRA" ke baad "Yahi jod Tod" bahut achhi lagi aur andar tak utar gayi.<br /><br />Dhanyawaad!satyahttps://www.blogger.com/profile/16629156356256699787noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-76412460638029455962010-10-03T06:06:42.201-07:002010-10-03T06:06:42.201-07:00अच्छी रचना ,जीवन दर्शन ।अच्छी रचना ,जीवन दर्शन ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1278179475997970216.post-65260263343957474702010-10-02T22:19:43.869-07:002010-10-02T22:19:43.869-07:00लेकिन इस बीच
यह जाते हैं भूल कि -
कौन- सा टुकड़ा क...लेकिन इस बीच<br />यह जाते हैं भूल कि -<br />कौन- सा टुकड़ा किस धागे से तोड़ा था<br />कौन- सी बात किस बात का हिस्सा है !<br /><br />अब नयी उलझन कि -<br />किन- किन हिस्सों को आपस में जोड़ दें ,<br />कहीं फिर झुंझलाकर और भी न तोड़ दें ,<br />या कि इन्हें घबराकर ऊबें और छोड़ दें !<br /><br />लेकिन हमने धीरज से काम लिया-<br />कौन जान पायेगा ?<br />किसी को किसी में जैसे-तैसे जोड़ दिया,<br />रील एक बना ली ,<br />अब मैं बुद्धिमान, प्रतिभा का धनीहूँ,<br />ए! ज़रा सुनों तनिक,<br />दुनियाँ को समझोगे ?<br />देखो, मैं दार्शनिक !<br /><br />उलझी हुयी जिंदगी के लिए एक सुलझी हुयी रचना देने के लिए ह्रदय से आभार<br />ऐसा ही होता सच में ऐसा ही होता है खुद को श्रेष्ठ मानने के लिए या बनाने के लिए<br />यही जोड़ तोड़ करना पड़ता है<br />रचना सन्देश देने में सफल रही है<br />कविता के माध्यम से एक राज खुल गया हैवीथिकाhttps://www.blogger.com/profile/08258472078499835989noreply@blogger.com