फर्क है उन्वान मेँ,
बस मुहब्बत ही लिखा
गीता मेँ और कुरआन मेँ।
हाँ, सियासी तर्जुमानोँ
मेँ फर्क़ मिल जाएगा,
फर्क़ वरना कुछ नहीँ
इंसान और इंसान मेँ।
एक ही मक़सद तुम्हारा
माल कैसे लूट लेँ,
जाके तो देखो किसी
मंदिर मेँ या दूकान मेँ।
बड़ी मछली का निवाला
छोटी मछली है मगर,
फर्क़ क्या कुछ भी नहीँ
है जानवर इंसान मेँ।
गैर की बंदूक की गोली
न बन ऐ हमवतन,
घर का आंगन मत बदल
तू जंग के मैदान मेँ।
पुराने टूटे हुए फानूस
से बाहर निकल,
ख़ौफ मेँ मत जी 'मिसिर'
रख दे दिया तूफान मेँ।
लाजबाब ।
जवाब देंहटाएंदास्ताँ तो एक ही है
जवाब देंहटाएंफर्क है उन्वान मेँ,
बस मुहब्बत ही लिखा
गीता और कुरान में ....
बहुत सुंदर......!!
गैर की बंदूक की गोली
जवाब देंहटाएंन बन ऐ हमवतन,
घर का आंगन मत बदल
तू जंग के मैदान मेँ।
waah arun ji..kya khayal hai..hats off