समझना और अब क्या कोई समझी बात क्या समझे,
हम उनको देखो क्या समझे थे और वो हमको क्या समझे !
तेरी सीटी पे आखिर अब वो खिड़की क्यों नहीं खुलती,
बड़े नादां 'मिसिर' हो तुम तगाफुल को हया समझे !
मेरी भोली सी सूरत उसने क्या से क्या बना डाली ,
गज़ब हमने किया जो नुक्ताचीं को आइना समझे !
उन्हें खुद के संवरने से नहीं फुर्सत मिली अब तक ,
क्या देखें ग़ज़ल मेरी क्या वो अंदाज़े-बयां समझे !
न बरसे अब्र अब तक ज़िंदगी की शाम हो आयी ,
हम इन सूखी घटाओं को हवाओं की जफा समझे !