रोशनी की यह गली बहुत तंग है ,
हम यहाँ से होकर जो जायेंगे -
अंधेरों में सन जायेंगे !
हमने अपनी तड़प से कई बार पूछा -
कि तू क्यों उन अंधेरी ,गुमनाम गलियों की ,
रोज़ जीती और मरती कथा कहती आ रही है,
क्यों मुझे चैन से जीने नहीं देती,
क्यों सता रही है ,
यह रोशनी,यह रौनक ,यह रंग -
तुझे क्यों नहीं भाता ,
क्यों तुझे भी राजपथ पर चलना नहीं आता,
मगर कोई जवाब नहीं आया -
सिवा इसके कि भीतर
कुछ तड़का, कुछ टूटा ,
कुछ धसक गया !!
कुछ आवाज़ों के शब्द नहीं ,सिर्फ अर्थ होते हैं !!
हम यहाँ से होकर जो जायेंगे -
अंधेरों में सन जायेंगे !
हमने अपनी तड़प से कई बार पूछा -
कि तू क्यों उन अंधेरी ,गुमनाम गलियों की ,
रोज़ जीती और मरती कथा कहती आ रही है,
क्यों मुझे चैन से जीने नहीं देती,
क्यों सता रही है ,
यह रोशनी,यह रौनक ,यह रंग -
तुझे क्यों नहीं भाता ,
क्यों तुझे भी राजपथ पर चलना नहीं आता,
मगर कोई जवाब नहीं आया -
सिवा इसके कि भीतर
कुछ तड़का, कुछ टूटा ,
कुछ धसक गया !!
कुछ आवाज़ों के शब्द नहीं ,सिर्फ अर्थ होते हैं !!
कुछ आवाज़ों के शब्द नहीं ,सिर्फ अर्थ होते हैं !!रोशनी की यह गली बहुत तंग है ,
जवाब देंहटाएंहम यहाँ से होकर जो जायेंगे -
अंधेरों में सन जायेंगे !
अच्छी रचना
कुछ आवाज़ों के शब्द नहीं,सिर्फ अर्थ होते हैं...
जवाब देंहटाएंइसी मूलमंत्र के ताने-बाने से बुनी कविता प्रभावशाली रही.
रचना की एक एक पंक्ति सारगर्भित और मनुष्यता की महान मजबूरी को रखांकित करने वाली हैं
जवाब देंहटाएंरचना की अर्थवत्ता अंतिम पंक्ति में स्वमेव प्रकट हो जाती है
होश में ला देने वाली रचना के लिए ह्रदय से बधाई
sundar panktiyaan!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता और चित्र भी ।
जवाब देंहटाएंआप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
अति सुन्दर रचना अरुण जी,आपके शब्दों का चयन बहुत आकर्षित करता है आभार!!
जवाब देंहटाएं'कुछ तडका, कुछ टूटा, कुछ धसक गया'. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है अलग-से अनुभव की.
जवाब देंहटाएंकुछ आवाजों के शब्द नहीं अर्थ होते हैं..... सुंदर रचना बहुत कुछ कहती हुई.....बधाई आपको अरुण सर....आभार
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