तीन पत्ती
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सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
shaandaar arun ji..Do baar padhi.. Too good :)
Ha Ha
ये जो है जिंदगी----
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद ! आपके स्नेह के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ !
ajeeb hi hai jindagi shayad....par magar jeena hai ..to kya hu hai ajeeb hi sahi...bahut sudar rachna ke liye badhai swuikaar karen sir aur aane waale ajee se nav varsh ki badhai bhi
जिसके मुंह का एक कोना अब भी सिला है !हा...हा...हा....जिसका एक कोना अब भी खुला है लिखते तो हाँफते से लगते न ....?
der se aane ko mafi chahti hubahut khubsurat rachna....kabhi yaha bhi aayewww.deepti09sharma.blogspot.com
itana achchha likhane ke alaawa aap ek kalaakaar bhi lagate hain .
हर दिन ज़रूरतें, मेरी गर्दन पर एक जुआ रख देती हैं !हर दिन मैं एक कोल्हू खींचता हूँ और कोल्हू मुझे !Misir ji ek rekha si kheech di hai aapne man me ..........waah .http://amrendra-shukla.blogspot.com
और शाम एक खाली बोरी घर वापस लौटती है ,जिसके मुंह का एक कोना अब भी सिला है !बहुत अच्छी रचना....
है न अजीब ....खूब कहा ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
बहुत सुंदर, जिंदगी की जद्दोजहद को शब्द दे दिये आपने ।
"हर दिन ज़रूरतें, /मेरी गर्दन पर एक जुआ रख देती हैं !/हर दिन मैं एक कोल्हू खींचता हूँ /और कोल्हू मुझे !"- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी. जीवन का सम्पूर्ण संघर्ष इन पंक्तियों से व्यंजित होता है. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
फिर एक बार इस कविता आनंद लिए जा रही हूँ .....जुए के बाद हल के इन्तजार में .......
har kavita me naya sa vichar...liked it
बहुत अच्छी रचना साधुवाद
आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार !
आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया का स्वागत है
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंshaandaar arun ji..
जवाब देंहटाएंDo baar padhi.. Too good :)
Ha Ha
जवाब देंहटाएंये जो है जिंदगी----
जवाब देंहटाएंआप सबका बहुत बहुत धन्यवाद ! आपके स्नेह के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ !
जवाब देंहटाएंajeeb hi hai jindagi shayad....par magar jeena hai ..to kya hu hai ajeeb hi sahi...
जवाब देंहटाएंbahut sudar rachna ke liye badhai swuikaar karen sir aur aane waale ajee se nav varsh ki badhai bhi
जिसके मुंह का एक कोना अब भी सिला है !
जवाब देंहटाएंहा...हा...हा....
जिसका एक कोना अब भी खुला है लिखते तो हाँफते से लगते न ....?
der se aane ko mafi chahti hu
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat rachna
....
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
itana achchha likhane ke alaawa aap ek kalaakaar bhi lagate hain .
जवाब देंहटाएंहर दिन ज़रूरतें,
जवाब देंहटाएंमेरी गर्दन पर एक जुआ रख देती हैं !
हर दिन मैं एक कोल्हू खींचता हूँ
और कोल्हू मुझे !
Misir ji ek rekha si kheech di hai aapne man me ..........waah
.http://amrendra-shukla.blogspot.com
और शाम
जवाब देंहटाएंएक खाली बोरी घर वापस लौटती है ,
जिसके मुंह का एक कोना अब भी सिला है !
बहुत अच्छी रचना....
है न अजीब ....खूब कहा ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, जिंदगी की जद्दोजहद को शब्द दे दिये आपने ।
जवाब देंहटाएं"हर दिन ज़रूरतें, /मेरी गर्दन पर एक जुआ रख देती हैं !/हर दिन मैं एक कोल्हू खींचता हूँ /और कोल्हू मुझे !"- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी. जीवन का सम्पूर्ण संघर्ष इन पंक्तियों से व्यंजित होता है. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान
जवाब देंहटाएंफिर एक बार इस कविता आनंद लिए जा रही हूँ .....
जवाब देंहटाएंजुए के बाद हल के इन्तजार में .......
har kavita me naya sa vichar...liked it
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !