आहाऽऽह… ! मन मोह लेने वाली कविता - समंदर के गीत गाते गुजर जाती मेघ-टोली और फिर एक बार बहने को कसमसा उठता है मरुथल , जागती है याद लहरों की !
… कविता का उतरार्द्ध भी बहुत भाव भरा … एक चिंता की उभरती टेकड़ी उठ बैठती और हवा को रोक कर कहती - " बादलों को ला सकोगी तुम , कर सकोगी एक सुहागन नदी फिर मुझको !"
पिछले दो-तीन महीनों में माताजी के स्वास्थ्य तथा अन्य परेशानियों के चलते नेट पर अधिक सक्रिय नहीं रह पाया … आपकी भी कुछ न पढ़ी हुई रचनाएं आज पढ़ी हैं
मिसिर जी कैसे हैं ....? बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ ..... आपकी सशक्त लेखनी की तो कायल हूँ .... अपनी कुछ क्षणिकाएं दीजिये मुझे 'सरस्वती-सुमन 'पत्रिका के लिए १०,१२ क्षणिकाएं संक्षिप्त परिचय व चित्र के साथ भेज दें .... आभार .....!!
गहरे भाव लिए एक
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति के लियें आपका आभार...
आदरणीय मिसिर जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम !
आहाऽऽह… ! मन मोह लेने वाली कविता -
समंदर के गीत गाते
गुजर जाती मेघ-टोली
और फिर एक बार बहने को
कसमसा उठता है मरुथल ,
जागती है याद लहरों की !
… कविता का उतरार्द्ध भी बहुत भाव भरा …
एक चिंता की उभरती टेकड़ी
उठ बैठती
और हवा को रोक कर कहती -
" बादलों को ला सकोगी तुम ,
कर सकोगी
एक सुहागन नदी फिर मुझको !"
पिछले दो-तीन महीनों में माताजी के स्वास्थ्य तथा अन्य परेशानियों के चलते नेट पर अधिक सक्रिय नहीं रह पाया … आपकी भी कुछ न पढ़ी हुई रचनाएं आज पढ़ी हैं
आशा है , आप सपरिवार स्वस्थ-सानन्द होंगे …
हार्दिक शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
मिसिर जी कैसे हैं ....?
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इधर आना हुआ .....
आपकी सशक्त लेखनी की तो कायल हूँ ....
अपनी कुछ क्षणिकाएं दीजिये मुझे 'सरस्वती-सुमन 'पत्रिका के लिए
१०,१२ क्षणिकाएं संक्षिप्त परिचय व चित्र के साथ भेज दें ....
आभार .....!!