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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

चुनाव संपन्न हुए !

वो जो लपलपाती जीभ जैसे पत्तों वाला पेड़ है 
जिसके नीचे पाँच साल तक ठहरती है छाया ,
वहाँ कुछ टेढ़ी-मेढ़ी रेखायें लेटी थीं मज़े में 
... कुछ गोल-मटोल बिन्दुओं के साथ ,
मिलकर एक शक्ल -सी बनाती हुई 
आँखों की जगह घास के पैबंद 
चुइंगम चबाता मुँह 
होंठों की हिकारत भरी मुस्कान
हिलाता रहता है लगातार !

धूप आ गयी तो उठ कर चले गए सब
दूसरे पेड़ की छाया में
तनिक बदली हुई है शक्ल अब
होंठों पर हिकारत भरी मुस्कान
और भी लम्बी हो गयी है !

चुनाव संपन्न हुए !

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