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बुधवार, 14 मार्च 2012

पहाड़ों पर सस्ती है धूप !




धूप के भाव क्या चढ़े 
नंगई पे उतर आए पेड़, 
पके -अधपके सब पत्ते  गिरा दिये 
नए पत्तों की भर्ती  पर रोक लगा दी ,
बंद कर दिया धर्मखाता 
मुफ्त की छाया का ,
और वह डाल
जो पूँछ लेती थी कभी-कभी 
पड़ोसी का हाल 
अब ज़मीन सूँघ रही है ,
अपने सारे बीज 
हवाओं के ट्रकों से 
पहाड़ों पर भेज दिये हैं 
धूप वहाँ  सस्ती है !

बेचारी दूब
वह क्या गिराती 
उसने अपना हरा रंग 
खींच लिया वापस जड़ों मे,
और धूप की याद में पीली पड़ गई !

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