सुबह का ख़्वाब,
वो भी प्रीतम का,
तन और मन जैसे,
चिपक गए होँ कसके,
देखो कितनी,
लाल हो गई है सुबह,
खीँच कर छुड़ाने मेँ,
अब दिन भर,
खिँचे खिचे रहेँगे दोनोँ,
कहीँ अटके अटके,
पुरानी यादों के,
कमरे मेँ,
मैले भारी परदोँ जैसे,
उदास हिलते रहेँगे,
लटके लटके।.
वो भी प्रीतम का,
तन और मन जैसे,
चिपक गए होँ कसके,
देखो कितनी,
लाल हो गई है सुबह,
खीँच कर छुड़ाने मेँ,
अब दिन भर,
खिँचे खिचे रहेँगे दोनोँ,
कहीँ अटके अटके,
पुरानी यादों के,
कमरे मेँ,
मैले भारी परदोँ जैसे,
उदास हिलते रहेँगे,
लटके लटके।.
देखो कितनी,
जवाब देंहटाएंलाल हो गई है सुबह,
खीँच कर छुड़ाने मेँ,
अब दिन भर,
खिँचे खिचे रहेँगे दोनोँ,
कहीँ अटके अटके,
वाह...वाह....प्रेम रस में भीगी सुबह मुबारक हो .....!!
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जवाब देंहटाएंमहकती सुबह में सुहानी रचना!
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क्या लिख दिया लाजबाव । जोरदार प्रात ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अरुण जी .....
जवाब देंहटाएंपर ये आप अब ख्वाब से कब निकलेंगे .....??