वफ़ा में मेरी कसर कोई रह गयी क्या है ,
जब भी पूछा,तो वो बोला,तुम्हें जल्दी क्या है |
लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता है,
और हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है |
ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |
नागहाँ चाँद ढल गया मगर फिर उसके बाद ,
देर तक छाई रही उसकी चांदनी क्या है |
न पूँछ हाल, ये है गर्क-ए-मुहब्बत, इसको-
खबर नहीं की ख़ुदी क्या है बेख़ुदी क्या है |
आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी क्या है |
अश्क में डूबे हैं अशआर "मिसिर" के लेकिन,
दाद मिलने पे ये चेहरे की ताजगी क्या है |
जब भी पूछा,तो वो बोला,तुम्हें जल्दी क्या है |
लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता है,
और हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है |
ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |
नागहाँ चाँद ढल गया मगर फिर उसके बाद ,
देर तक छाई रही उसकी चांदनी क्या है |
न पूँछ हाल, ये है गर्क-ए-मुहब्बत, इसको-
खबर नहीं की ख़ुदी क्या है बेख़ुदी क्या है |
आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी क्या है |
अश्क में डूबे हैं अशआर "मिसिर" के लेकिन,
दाद मिलने पे ये चेहरे की ताजगी क्या है |
बहुत बढ़िया ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएं--
मेरा मन सरस झोंका!
nice gazal
जवाब देंहटाएंलूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता है,
जवाब देंहटाएंऔर हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है |
आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी क्या है |
Bahut hi behtareen !
ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
जवाब देंहटाएंअब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |
वाह वाह मिसिर जी बेहतरीन गज़ल पेश की है ।
यूँ तो हर शे'र लाजवाब है पर ये लिए जा रही हूँ .......
जवाब देंहटाएंये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |
यूँ तो आप का हर अशआर ही बेनज़ीर है !
जवाब देंहटाएंआपको फिर टिप्पणी की जरूरत क्या है !!
:-)
हा हा हा
बहुत ही अच्छी गज़ल है.
स्वागत है.
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंगजल मुकम्मल ।
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल यदि हिन्दी
जवाब देंहटाएंमेँ होती तो और अच्छा
होता।
आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !