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सोमवार, 26 जुलाई 2010

अंजाम-ए-आशिकी क्या है

वफ़ा में मेरी कसर कोई रह गयी क्या है ,
जब भी पूछा,तो वो बोला,तुम्हें जल्दी क्या है |

लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता  है,
और हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है  |  

ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |

नागहाँ चाँद ढल गया मगर फिर उसके बाद ,
देर तक छाई रही उसकी चांदनी क्या है |

न पूँछ हाल, ये है गर्क-ए-मुहब्बत, इसको-
खबर नहीं की ख़ुदी क्या है बेख़ुदी क्या है |

आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी  क्या है |

अश्क में डूबे हैं अशआर "मिसिर" के लेकिन,
दाद मिलने पे ये चेहरे की ताजगी क्या है  | 

10 टिप्‍पणियां:

  1. लूट कर मुझको वो कज्जाख अब ये कहता है,
    और हो जायेगा फिर, आपको कमी क्या है |

    आँख से उसकी जो देखा तो ये जाना हमने,
    इक तमाशे के सिवा और ज़िन्दगी क्या है |

    Bahut hi behtareen !

    जवाब देंहटाएं
  2. ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
    अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |
    वाह वाह मिसिर जी बेहतरीन गज़ल पेश की है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. यूँ तो हर शे'र लाजवाब है पर ये लिए जा रही हूँ .......

    ये कत्लगाह, सलीबें, ये सलासिल, ये कफस,
    अब न पूछूँगा मैं, अंजाम-ए-आशिकी क्या है |

    जवाब देंहटाएं
  4. यूँ तो आप का हर अशआर ही बेनज़ीर है !
    आपको फिर टिप्पणी की जरूरत क्या है !!
    :-)
    हा हा हा
    बहुत ही अच्छी गज़ल है.
    स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी गज़ल यदि हिन्दी
    मेँ होती तो और अच्छा
    होता।

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  7. आप सभी मित्रों का सुन्दर टिप्पणियों के लिए
    हार्दिक आभार !

    जवाब देंहटाएं

आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया का स्वागत है