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गुरुवार, 19 मई 2011

नए सबेरे का सूरज


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वो जिनके सीनों में दुबक कर
रौशनी ने खुद को बचा रक्खा है
अंधेरों की निगाहों से ,
तुम्हारे भुलावे के जंगल से
निकल कर पंहुच रहे हैं
सोंच के इक अंजाम तक !

जल्द यह घाटी भर जायेगी
जुगनुओं से
और यहीं से उगेगा
नए सबेरे का सूरज !

और आंधी सिर्फ हवाओं की ही नहीं होती
जिसमें सिर्फ शाखें ही टूटती हैं ,
दरख़्त ही उखड़ते हैं-
आंधी रौशनी की भी होती है
जिसमें जड़ें तक जल जाती हैं !

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