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शनिवार, 26 मई 2012

हमेशा उन्हें अपने मे पाओगी !


क्या सहेजा उस पत्थर को पहाड़ ने ,
उस पीले पत्ते को पेड़ ने,
नदी ने उस लहर को ,
उन्हें भरोसा है -
वे कहीं नहीं जाते हैं 
जरा-सा घूम-फिर के लौट आते हैं 
यहाँ नहीं तो वहाँ वहाँ नहीं तो कहीं और 
धरती के सिवा उनका कोई  नहीं है ठौर !
दरअसल  
हम उन्हें नही उनकी पहचान को सहेजते हैं  
उनकी पहचान को खोने से डरते हैं 
तुम रश्मि,
जिस दिन धरती-सी हो जाओगी 
हमेशा उन्हें अपने मे पाओगी !

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