वह रूप तज़ल्ली मेँ
दिख कर छुपा न होता
यह दर्द मुहब्बत का
हमको अता न होता।
उसकी ज़िया के आगे
आँखे न झपक जातीँ
कोई मैकशी न होती
कोई मैकदा न होता।
कोई मैकदा न होता।
अच्छा तो यही होता
आँखेँ ही फूट जातीँ
यह शौके -दीद अपना
कुफ्रो -ख़ता न होता।
इस दर्द को छोड़ो जी
गर तुम न मिले होते
पहलू मेँ कोई दिल है
यह भी पता न होता।
फितरत मेँ गर न होती
आवारगी जहाँ की
कोई नक्शे -पा न बनता
कोई रास्ता न होता।
सलाम
आँखेँ ही फूट जातीँ
यह शौके -दीद अपना
कुफ्रो -ख़ता न होता।
इस दर्द को छोड़ो जी
गर तुम न मिले होते
पहलू मेँ कोई दिल है
यह भी पता न होता।
फितरत मेँ गर न होती
आवारगी जहाँ की
कोई नक्शे -पा न बनता
कोई रास्ता न होता।
सलाम
Pehloo mein koi dil hai ye bhi pataa na hotaa....yeh misraa mere upar chhaap chhod gaya hai....hatss off
जवाब देंहटाएं.
--Gaurav (Lams)
शुक्रिया लम्स
जवाब देंहटाएंकुछ शेर अनायास
आते हैँ उसमेँ आपकी
कोई कोशिश नहीँ होती।
hota to sab yu hi hai ,
जवाब देंहटाएंbas hum samajh kuchh aur lete hain .....