धूप आ
धूप आ
बादल से कूद आ
पर्वत फलाँग आ
कोहरे को टाँग आ
नदी ताल पार कर
फुँनगियोँ पे मत ठहर
घने पेड़ छोड़ आ
घास घास दौड़ आ
धूप आ
बादल से कूद आ
पर्वत फलाँग आ
कोहरे को टाँग आ
नदी ताल पार कर
फुँनगियोँ पे मत ठहर
घने पेड़ छोड़ आ
घास घास दौड़ आ
मुझे फिर रंग दे
नया एक ढंग दे
डाल मुझे झुक कर
धूल से उठा ले
मेरा मुँह पोँछ दे
गोद मेँ बिठा ले
ममता के रूप आ
धूप आ
धूप आ