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बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

मुक्त मन



मुक्त मन
एक गरुड़ होता है।
प्रलम्बित पंख
अपने तान
वह उड़ता नहीँ
आरूढ़ होता है
उड़ानोँ पर
तनी वल्गाओँ से
क्षिप्रता को थाम।
आकाश उसके सामने
आता नहीँ
दूर हटकर
मार्ग देता है
दिशायेँ एक हो जातीँ
काल कवलित काल
होता है।
वो जब उड़ता है
पीछे छोड़ता जाता
आलोक -नद -उद्दाम
हहराता
जो मुझको तोड़ देता
फोड़ देता
चूर कर देता
समूची अस्मिता को
लील जाता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. पर्यावरण की रक्षा का अच्छा संकेत है ,प्रशंसनीय ।

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  2. Wandering...Wandering....,
    Fortunately I saw a name ARUN MISRA ,
    I hope h's spiritually aware one.
    Really India is unpredictable.
    I gone through the verses ,
    It seems that words are showering through paradise of Holy wisdom.

    Wonderful !!

    Keep Exploring.....................

    IBODHISATVA

    जवाब देंहटाएं

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