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सोमवार, 21 जनवरी 2013

चिड़िया


अब वह चिड़िया मछली बन गई है ! 
कल तक जो  
अचानक फुर्र से आकर 
मेरी जाँघों या कन्धों पर बैठ जाया करती थी 
और एक सुन्दर ,सुकोमल ,रंगीन पंख 
मेरे लिए छोड़ जाया करती थी 
ढेर सारे  पंख हो गए थे मेरे पास 
जिन्हें मैं सबको दिखाता 
उनकी  आँखों में पंखों के लिए प्रशंसा होती 
और मेरे लिए ईर्ष्या के काँटे 
लेकिन वे काँटे मुझ तक आते-आते
फूल बन जाते और मुझे महका देते 
मेरे लिए अब वह चिड़िया सिर्फ पंखों का गुच्छा थी 
जिन्हें मैं  पाना चाहता था  
एक दिन वह मेरी इच्छा भांप गई और चली गई 
जाते वक़्त उसने मुझसे कहा था--
"हजारो साल की विकास-यात्रा तय करके
मैं चिड़िया बनी थी 
तुम्हारी हवस ने मुझे फिर से मछली बना दिया है 
अब तुम तक
मैं उड़ कर नहीं  पहुँच पाउंगी 
हाँ,तुम मुझे अपनी बंसी में फंसा सकते हो 
लेकिन तब 
मैं बाहर आते ही  मर जाउंगी !

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