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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

ज़रूरतें


हर दिन ज़रूरतें,  
मेरी गर्दन पर एक जुआ रख देती हैं !

हर दिन मैं एक कोल्हू खींचता हूँ 
और कोल्हू मुझे !

सारा दिन -
ऊब  के साथ एक ही वृत्त में घूमते रहना 
सरसों के साथ मेरा भी तेल निकाल लेता है !

और शाम 
एक खाली बोरी घर वापस लौटती है ,
जिसके मुंह का एक कोना अब भी खुला  है !

है न अजीब !