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सोमवार, 21 जनवरी 2013

शौके-ए-नज्जारा


पलीता 
पटाखे से पहले जल जाता है 
वह नहीं जान पाता --
कितनी आवाज़ हुई,
कितना धुआँ उठा,
कितनी चिंगारियाँ उड़ी ,
और कितनी रोशनी हुई ,
वह धमाके के बाद के जश्न में 
शामिल नहीं होता ,

मध्यवर्गीय पलीता 
दिल में रखता है 
एक शौक़-ए -नज्जारा !!
वह तय करता है --
कि अबसे पटाखे को
बाहर से समर्थन देगा !

कड़ी रोटी


Saturday, October 6, 2012
इतनी कड़ी  रोटी थी
कि निवाला तोड़ने में
मेरे नाखून टूट गए
और चबाने में दांत ,

जुबान तो इतना डर गई
कि जोड़ दिए हाँथ और
करने लगी प्रार्थना ,

दिमाग ने कर लिया समझौता
और अब वह लालटेन की लौ को
नीची रखने पर राजी है ,

लकड़ियों ने भी मान लिया है  कि
तेज़ आँच  में रोटी कड़ी  हो जाती है
और अब से उन्हें
रोटी सिर्फ धुएँ में सेंकनी होगी  !

जेबें


जेबें तो 
सब उनकी ही हैं 
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 
कि वे
हमारे कपड़ों में सिली हैं !

प्यार


प्यार मुर्दों के बस का नहीं 
उनके ठन्डे बदन ज़रा देर को भी 
नहीं टिका पाते 
थोड़ी सी कुनकुनाहट 
वे रखते हैं अपना फर्श 
हरदम साफ़ 
वे किताबें नहीं 
झाडू पढ़ते हैं !

सच


मैं आपके सामने आना चाहता हूँ 
लेकिन 
अपनी रूचि और नाप के कपड़ों में 
आपकी दी
उतरनो  में नहीं !

कायरता


हम  कायर बने रहना
पसंद करते हैं,
जब तक कि हमारा सिर  
शेर के जबड़े में
न हो !

हड़बड़ी


देर से उठा सूरज 
हड़बड़ा कर  
उसी आकाश  में निकल आता है    
जिसमें कल डूबा   था !

बधाई


पर्व की बधाई न दे सकूँगा  
उन्हें 
जो इसे 
नहीं मना सकेंगे ,
न उन्हें 
जो इसे 
उनके बिना मनाएंगे ।

गोल पत्थर


Saturday, November 17, 2012
वह पत्थर
गोल तो नहीं था
लेकिन एक लम्बी ढलान पर
देर तक लुढ़कने के बाद
गोल हो गया !

अब एक हलकी -सी ठोकर
उसे दूर तक लुढ़का देती है |

लेकिन एक और पत्थर भी है
उससे भी ज्यादा गोल और चिकना
--उसका प्रतिरोध ,
जब लुढ़कता है
उससे भी आगे जाता है |

परिवर्तन


नदी के बहते पानी की तरह
नहीं होता है परिवर्तन, 
वह होता है --
जैसे सीढ़ियों पर रखे हों बर्तन ,
पहले एक भरे
फिर उससे होकर दूसरे में 
गिरने लगे  पानी 
तब तक तीसरा
इंतज़ार करे.........
.......................
......................
तुम किस बर्तन में हो
जानते हो ? 

निरर्थ


जुल्म और अन्याय के खिलाफ 
तुम्हारा नारे लगाना
समझ में आता है 
लेकिन  
बिलकुल समझ में नहीं आता 
सिर्फ नारे लगाना 
और हर बार 
हक पाए  बिना 
खाली हाथ लौट आना !

दो क्षणिकाएँ


यह लोहे की फ़ुटबाल है !!

इससे लोहे के पैर वाले खेलते हैं 
बाक़ी 
इस पर पैरों को लोहा बनाने  का 
अभ्यास करते हैं !

2-
मेरा घर ही मेरा देश है 
उसके चारों  और एक बाज़ार है 
और उसके आगे
दूर-दूर तक 
फैला हुआ  हुआ अखबार है |

वे नदियाँ


१.
मैं खोल देना चाहता हूँ 
नदियों के तटबन्ध 
ताकि वे बहक जाएँ  
और किसी दिन किसी दरार के रास्ते 
मेरे घर में सरक  आयें 
झूठ मूठ मेरे न न करने पर भी
मुझे भिगो दे ,नहला दें और ठंडा कर दें
और वापस चली जाएँ
नाली के रास्ते | 
२.
वे मेरी आँखें नहीं धो पातीं 
मेरे नहा चुकने के बाद 
वे नदियाँ 
मुझे नाली लगती हैं !

चिड़िया


अब वह चिड़िया मछली बन गई है ! 
कल तक जो  
अचानक फुर्र से आकर 
मेरी जाँघों या कन्धों पर बैठ जाया करती थी 
और एक सुन्दर ,सुकोमल ,रंगीन पंख 
मेरे लिए छोड़ जाया करती थी 
ढेर सारे  पंख हो गए थे मेरे पास 
जिन्हें मैं सबको दिखाता 
उनकी  आँखों में पंखों के लिए प्रशंसा होती 
और मेरे लिए ईर्ष्या के काँटे 
लेकिन वे काँटे मुझ तक आते-आते
फूल बन जाते और मुझे महका देते 
मेरे लिए अब वह चिड़िया सिर्फ पंखों का गुच्छा थी 
जिन्हें मैं  पाना चाहता था  
एक दिन वह मेरी इच्छा भांप गई और चली गई 
जाते वक़्त उसने मुझसे कहा था--
"हजारो साल की विकास-यात्रा तय करके
मैं चिड़िया बनी थी 
तुम्हारी हवस ने मुझे फिर से मछली बना दिया है 
अब तुम तक
मैं उड़ कर नहीं  पहुँच पाउंगी 
हाँ,तुम मुझे अपनी बंसी में फंसा सकते हो 
लेकिन तब 
मैं बाहर आते ही  मर जाउंगी !

मैं पुरुष


मैं पुरुष हूँ 
और यह मेरा चुनाव नहीं ,
मुझे इसका कोई पछतावा नहीं 
और न ही कोई शर्मिंदगी 
मैंने तो नहीं दिखाई कभी 
किसी स्त्री के प्रति दरिंदगी 
न ही अपने बाहुबल से रौंदा 
उसकी कोमलता को 
बल्कि उसे संभाला है, 
सहेजा  है ,संवारा है ,
प्रेम किया है उसे !
हाँ ,मैं पुरुष हूँ 
देह से और  मानसिकता से 
पुरुष  होना स्त्री होने से  कम भव्य है क्या ? 
पौरुष को पशुता का पर्याय मत कहो 
पशुओं में नर  ही नहीं 
मादाएं भी होती हैं !

जरूरी चीजें


जरूरी चीजें हमलावर होती हैं !

वे अपनी अपरिहार्यता का पाश लिए 
हमारी तरफ बढ़ती हैं 
और हमें जकड़ लेती हैं !

बचाव में हमें करना होता है 
उन्हें निरस्त्र 
या निरंतर तिरस्कार से
उनकी धार को कुंद !

वे हमारे सिर पर सवार न हो जाएँ 
हम उन्हें जमीन पर 
अपने बराबर रखने  की जगह 
एक गहरे गड्ढे में रखते हैं 

अगर वह चीज जानदार हो 
मसलन वह एक औरत हो 
तो हम गड्ढा 
उसकी पहुँच से अधिक गहरा  रखते हैं !

फिर भी हमारे तमाम इंतजामों के बा-वजूद 
अगर उन्हें वहाँ  रोका न जा सके 
और वे खुद-ब-खुद बाहर  आने लगें 
तो हम उनकी मदद में 
सबसे आगे रहेंगे 
उन्हें बाहर निकालेंगे 
लेकिन जमीन पर अपने बराबर नहीं 
बल्कि आसमान पर बिठा देंगे !

क्षणिकाएं



१--
छाती तक चढ़ी
मँहगाई की नदी का पूरा दबाव है
आदमी पर
कि वह मछली बन जाए
और सिर्फ चारा देखे
चारे में छिपा काँटा न देख पाए !
२--
मंहगाई ने
चौकी को और छोटा कर दिया ,
जो रिश्ते किनारे बैठे थे
जमीन पर गिर पड़े !

अस्तित्व:एक नदी


वह मान बैठी है --
अस्तित्व ही उसकी व्याधि है ,

जिससे मुक्ति के लिए 
ढलानों की तलाश में बल खाती हुई 
वह अपना जिस्म तोड़ती रहती है, 

वह हर गड्ढे में उतर कर नापती  है 
अपने समां जाने भर की जगह,

वह हर उस नदी के साथ हो लेती है  
जिसके पास किसी समंदर  का पता है ,

वह नहीं जानती 
कि पीछे आने वाला पानी भी 
दरअसल वही है ,

वह कभी नहीं चुकेगी !

सर्जरी


इतना भर गया था फ़ोड़ा
कि कभी भी लाल पड़ सकता था ।
पहले चीरे से
खूब सारा मवाद निकला
गाढ़ा और गरम ।
दूसरे चीरे से
थोड़ा बदबूदार पानी और ।
सर्जन ने रिपोर्ट लगा दी है -
" दुबारा अभी
इतनी जल्दी नहीं भरेगा फोड़ा ,
खतरा टल गया है फिलहाल ,
बिल साथ लगा रहा हूँ  "।
बच्चा अब मोबाइल पर गाने सुन रहा है ।