मैं पुरुष हूँ
और यह मेरा चुनाव नहीं ,
मुझे इसका कोई पछतावा नहीं
और न ही कोई शर्मिंदगी
मैंने तो नहीं दिखाई कभी
किसी स्त्री के प्रति दरिंदगी
न ही अपने बाहुबल से रौंदा
उसकी कोमलता को
बल्कि उसे संभाला है,
सहेजा है ,संवारा है ,
प्रेम किया है उसे !
हाँ ,मैं पुरुष हूँ
देह से और मानसिकता से
पुरुष होना स्त्री होने से कम भव्य है क्या ?
पौरुष को पशुता का पर्याय मत कहो
पशुओं में नर ही नहीं
मादाएं भी होती हैं !
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