LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

गुरुवार, 29 मार्च 2012

जानकीपुल: शमशेर बहादुर सिंह के अज्ञेय

जानकीपुल: शमशेर बहादुर सिंह के अज्ञेय:   अज्ञेय विविधवर्णी लेखक और विराट व्यक्तित्व वाले थे. यही कारण है कि कुछ विद्वानों का यह मानना रहा है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद वे सब...

मंगलवार, 20 मार्च 2012

निष्पक्ष

निष्पक्ष 
यानी पक्ष-हीन !!
मुर्गियों की दिलचस्पी 
उड़ने में नहीं होती ,
वे दड़बे में रहती हैं 
दानों के इंतजार में 
अंडों के बदले ! 

सोमवार, 19 मार्च 2012

बजट



------
वह आया 
मरहम की एक डिबिया लाया 
उसे घाव के लिए 
बहुत मुफीद बताया ,
"लेकिन इसको लगाने के लिए 
घाव को थोड़ा और बड़ा करना होगा ,
थोड़ा और सहो जहाँ इतना सहा "--
उसने कहा !  

बुधवार, 14 मार्च 2012

पहाड़ों पर सस्ती है धूप !




धूप के भाव क्या चढ़े 
नंगई पे उतर आए पेड़, 
पके -अधपके सब पत्ते  गिरा दिये 
नए पत्तों की भर्ती  पर रोक लगा दी ,
बंद कर दिया धर्मखाता 
मुफ्त की छाया का ,
और वह डाल
जो पूँछ लेती थी कभी-कभी 
पड़ोसी का हाल 
अब ज़मीन सूँघ रही है ,
अपने सारे बीज 
हवाओं के ट्रकों से 
पहाड़ों पर भेज दिये हैं 
धूप वहाँ  सस्ती है !

बेचारी दूब
वह क्या गिराती 
उसने अपना हरा रंग 
खींच लिया वापस जड़ों मे,
और धूप की याद में पीली पड़ गई !

सोमवार, 5 मार्च 2012

दो कवितायेँ !!


१.
घर कितना बड़ा हो जाता है ,
बर्तन कितने ज्यादा 
और कपडे सुखाने की रस्सी
कितनी लम्बी ,

जब तुम नहीं  होती हो !
...........................................
२.
हर कोई एक वक़्त में खरीदार है 
तो दूसरे में दूकानदार ,
वो एक जगह बिकता है 
तो दूसरी जगह खरीदता है !
उसके दोनों कन्धों पर झोले हैं 
एक बिकाऊ सामान से भरा 
और दूसरा खरीद की चीज़ों के लिए खाली !

इंतज़ाम ही ऐसा है ......................
.
कि एक जितना खाली होता है 
दूसरा उतना भरता नहीं !
जब कम भरता है 
आदमी गरीब हो जाता है 
और ज्यादा तो अमीर !

ये कीमतें कौन तय करता है 
कम से कम तुम तो नहीं  -'गरीब आदमी ' !