धूप के भाव क्या चढ़े
नंगई पे उतर आए पेड़,
पके -अधपके सब पत्ते गिरा दिये
नए पत्तों की भर्ती पर रोक लगा दी ,
बंद कर दिया धर्मखाता
मुफ्त की छाया का ,
और वह डाल
जो पूँछ लेती थी कभी-कभी
पड़ोसी का हाल
अब ज़मीन सूँघ रही है ,
अपने सारे बीज
हवाओं के ट्रकों से
पहाड़ों पर भेज दिये हैं
धूप वहाँ सस्ती है !
बेचारी दूब
वह क्या गिराती
उसने अपना हरा रंग
खींच लिया वापस जड़ों मे,
और धूप की याद में पीली पड़ गई !
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