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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

'मिसिर' अगर मर जाए तो


देर से आए आए तो,
नासेह जी शरमाए तो।

देख मुझे रोए न मगर,
मुँह से निकली हाए तो।

मुब्हम मुब्हम कुछ बोले,
राज न दे, भरमाए तो।

अबके होश सम्हालेँगे,
घूँघट वो सरकाए तो।

ख़ुद को मसीही आ जाए,
मर्ज़ अगर बढ़ जाए तो।

बोलो किसे सताओगे,
'मिसिर' अगर मर जाए तो।

4 टिप्‍पणियां:

  1. हकीकत बयाँ कर दी अरुण जी , बहुत अच्छी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  2. अबके होश सम्हालेँगे,
    घूँघट वो सरकाए तो।
    बहुत खूब ,,,,,,!!

    बोलो किसे सताओगे,
    'मिसिर' अगर मर जाए तो।

    वाह ...वाह.....ये भी खूब कही .....!!

    जवाब देंहटाएं
  3. ख़ुद को मसीही आ जाए,
    मर्ज़ अगर बढ़ जाए तो।
    you have robbed my words. hindi me
    क्याबात है !
    सुभानअल्लाह !

    जवाब देंहटाएं

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