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गुरुवार, 2 सितंबर 2010

हासिल-ए-सौदा-ए-खाम








क्या जाने इस तड़प का कुछ होगा असर भी,
मझधार में ही डूब न जाये ये लहर भी !


साहिल से लग के बैठा हूँ क्या जानिए कब वो,
उस पार से आवाज़ दे 'अब आओ इधर भी '!


यूं ही नहीं मिला है इन्हें ताब-ए-नज्ज़ारा ,
देखी है इन आँखों ने क़यामत की सहर भी !


दिल से ही निकल आएंगे हर बात के मानी ,
कुछ देर को रक्खो ज़रा तुम दिल पे नज़र भी !


फिर हासिल-ए-सौदा-ए-खाम ये रहा 'मिसिर',
दिल भी गया,सर भी गया और अबके जिगर भी !

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात कही है आपने

    साहिल से लग के बैठा हूँ क्या जानिए कब वो,
    उस पार से आवाज़ दे 'अब आओ इधर भी

    दिल से ही निकल आएंगे हर बात के मानी ,
    कुछ देर को रक्खो ज़रा तुम दिल पे नज़र भी !

    फिर हासिल-ए-सौदा-ए-खाम ये रहा 'मिसिर',
    दिल भी गया,सर भी गया और अबके जिगर भी

    एक टेढ़ी बात सीधी तरह से समझ में आगई
    दिल को सुकून मिला पढ़ कर
    मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं

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