जो सूरज तुम हमें थमा गए थे
कलई उतार दी है उसकी परिमार्जकों ने ,
धो दिया है तेज़ाब से ,
काले-काले धब्बों ,गहरी ख़राशों से
भर गया है उसका उजला मुँह !
रोशनी देता है अब भी
मगर धब्बों और ख़राशों की
स्याह छाया भी प्रक्षिप्त करता है !
चीजें अब
कटी-पिटी,अधूरी दीखती हैं ,
हमेशा पहचाननें में गलती हो जाती है !
हर जगह और हर चीज में
धब्बे और खराशें भर गयी है !
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