भोर
पूरब के क्षितिज का छोर
शिव का शान्त श्यामल भाल
मेघ-से बिखरे जटा के बाल
कण्ठ मेँ गिरता नदी का स्याह जल-
मानवोँ की पाप-विष-धारा
पीने से न जिसका अन्त होता देख
चढ चली माथे पर शिव के क्रोध की लाली
खुली फिर पलक धीरे से
अंगारे-सी दहकती तृतीया आँख ने तब प्रलय बरसाई।
पूरब के क्षितिज का छोर
शिव का शान्त श्यामल भाल
मेघ-से बिखरे जटा के बाल
कण्ठ मेँ गिरता नदी का स्याह जल-
मानवोँ की पाप-विष-धारा
पीने से न जिसका अन्त होता देख
चढ चली माथे पर शिव के क्रोध की लाली
खुली फिर पलक धीरे से
अंगारे-सी दहकती तृतीया आँख ने तब प्रलय बरसाई।