किसी बर्कवश की हवस मेँ हूँ,
कि मैँ आशियाँ के कफस मे हूँ।
ठहरा हुआ दरिया हूँ मैँ,
अभी साहिलोँ की बहस मेँ हूँ।
नादाँ नजर नहीँ मानती,
कि मैँ इन्तिजार-ए-अबस मेँ हूँ।
हूँ शिकश्त -लब और यहाँ कि जब,
मैँ अपनी गुफ्त-ए-अखस मेँ हूँ।
कि मैँ आशियाँ के कफस मे हूँ।
ठहरा हुआ दरिया हूँ मैँ,
अभी साहिलोँ की बहस मेँ हूँ।
नादाँ नजर नहीँ मानती,
कि मैँ इन्तिजार-ए-अबस मेँ हूँ।
हूँ शिकश्त -लब और यहाँ कि जब,
मैँ अपनी गुफ्त-ए-अखस मेँ हूँ।