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सोमवार, 1 मार्च 2010

तराश ले....


तराश ले
मुझे शिल्पी !
तेरे ही रुप के
आभास - सी
अनगढ - सी
तेरी ही छवि हूँ मैँ भी-
तेरी ओर आता
हाँफता
गिरता
फिर उठता.....
मुझे अपने
नील कालजयी वक्ष मेँ
समा जाने दे,
उसकी
स्रजनरता आग मेँ
जल जाने दे,
राख हो जाने दे,
ओ शिल्पी !?