अलग अलग रंगो की
झण्डियोँ मेँ बँट रही
एक ही अफीम-
साम्प्रदायिकता की,
और वह सच की
गुनगुनी सुनहली धूप--
जो हरीतिमा जगाती है
पत्ते जिलाती है
फूल खिलाती है
अरे आज छन छन कर आती है
राह मेँ अडी है
घनी और ठंडी एक नीम-
राजसत्ता की।
झण्डियोँ मेँ बँट रही
एक ही अफीम-
साम्प्रदायिकता की,
और वह सच की
गुनगुनी सुनहली धूप--
जो हरीतिमा जगाती है
पत्ते जिलाती है
फूल खिलाती है
अरे आज छन छन कर आती है
राह मेँ अडी है
घनी और ठंडी एक नीम-
राजसत्ता की।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया का स्वागत है