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सोमवार, 1 मार्च 2010

चिड़िया रानी

 
आज किधर से सूरज निकला,
आज किधर की हवा चली |
चिड़िया रानी कहाँ रहीं थीं ,
बहुत दिनों के बाद मिली |
पहले तो घर के आँगन में ,
खूब धमाल मचाती थीं |
दाना चुगतीं, तिनकें चुनतीं ,
अपना नीड़ बनातीं थीं |
फिर क्या हुआ अचानक तुमने ,
मिलना जुलना छोड़ दिया ?
हमसे रिश्ता तोड़ के बोलो
किनसे रिश्ता जोड़ लिया |
चिड़िया बोली, "बिटिया रानी ,
ऐसी कोई बात नहीं |
प्यार करूँ और निभा ना पाऊं ,
ऐसी मेरी जात नहीं |
सारे पेड़ कट गए फिर ,
बोलो कैसे रह पाती मैं |
कैसे रैन बसेरा करती ,
किस पर नीड़ बनती मैं |
दूर घने जंगल में रहने ,
निकल गयी मैं क्या करती |
आखिर कुछ तो जीने का जरिया,
करती या, फिर मरती |
तुमसे बिछड़ कर दुःख ,
मुझे भी हुआ बहुत पर जाने दो |
सुना है, तुमने अबके बरस ,
सोचा है पेड़ लगाने को |"