कुछ नहीँ छोड़ा बीनाई मेँ,
ले लिया सब मुँह दिखाई मेँ।
सुर्ख़रू होकर ढला सूरज,
शब की काली रोशनाई मेँ।
कासा-ए-माज़ी गिरा सर से,
जीस्त पँहुची नारसाई मेँ।
'मिसिर' बाकी दिन कटेँगे क्या,
चौखटोँ की शनासाई मेँ?
होके अब बेज़ार बेचूनोचरा,
खुश रहो बेदस्तोपाई मेँ।
ले लिया सब मुँह दिखाई मेँ।
सुर्ख़रू होकर ढला सूरज,
शब की काली रोशनाई मेँ।
कासा-ए-माज़ी गिरा सर से,
जीस्त पँहुची नारसाई मेँ।
'मिसिर' बाकी दिन कटेँगे क्या,
चौखटोँ की शनासाई मेँ?
होके अब बेज़ार बेचूनोचरा,
खुश रहो बेदस्तोपाई मेँ।
बीनाई= दृष्टी, कासा-ए-माज़ी= अतीत का घाट , जीस्त= अस्तित्व , नारसाई= पहुँच के परे , शनासाई= परिचय , बेचूनोचरा=मौन और बिला शिकायत, बेदस्तोपाई= आश्रयहीनता
loving Arun it seems its a thoughtless thought.
जवाब देंहटाएंunfortunately i don't know even a single word of urdu how ever i dissolved your words in the bottom of my heart through given hints.
what could i say more.................
कुछ नहीँ छोड़ा बीनाई मेँ,
ले लिया सब मुँह दिखाई मेँ।