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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

पीली-सी चाँदनी

पी ली थी
पीली-सी चाँदनी !
एक घूँट
धूप के धोखे
आज तक धरने पे बैठा है चाँद
... ... आँखों की देहरी !
चाँदनी के बदले
कवितायेँ देता हूँ
वह बिन-देखे ही दूर फेंक देता है ,
कितना भरेगा यह
आसमान
तारों से ?

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