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मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

नैनीताल


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इन पहाड़ों ने 
पकड़ कर एक नदी 
गड्ढे में गिरा ली है ,
उनके कहकहे देख रहे हैं अब 
उसकी सहमी लहरों का कसमसाना !

वह लगातार कहती है किनारों पर --
"छोड़ दो मुझे
मुझे कहीं जाना है ,
एक अनजानी राह मेरी राह देख रही है
बहना ही मेरा स्वभाव है
मैं जल हूँ
रुकूँगी तो जल जाऊँगी
मेरे अंतर का वेग जब
क्षुब्ध हो उठेगा
घूर्णित जल-बिन्दुओं का घर्षण तब
बढ़ाएगा उत्ताप ,
भाप बन उड़ूँगी मैं
बादल बन उमड़ूँगी घुमड़ूँगी
घटा बन घहराऊँगी
और फिर तुम्हारे ऊपर बरसूँगी
काटूँगी ,क्षार-क्षार कर दूँगी
सब माटी तुम्हारी बहा दूँगी !
छोड़ दो मुझे
खोल दो राह मेरी
मुझे कहीं जाना है !"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत.................

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरे अंदर का वेग तुम्हे क्षार क्षार कर देगा छोडो मुझे जाने दो मुझे कहीं जाना है । नदी का आक्रोश बहुत तीव्रता से व्यक्त किया है आपने ।

    जवाब देंहटाएं

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