LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

मंगलवार, 23 मार्च 2010

जब हया ही तेरी


जब हया ही तेरी
फ़ितरत ठहरी,
नक़्शबंदी तो
मुसीबत ठहरी।

तू हमेशा नयी
दिखती है मगर,
ये पुरानी तेरी
आदत ठहरी।

बाम पर तुझको
नहीँ आना था,
फिर बुलाना तो
शरारत ठहरी।

वस्ल मेँ होश मगर
किसको था,
हिज़्र ठहरा तो
मुहब्बत ठहरी।

इक ख़ला तक तो
आ गए हो 'मिसिर',
इसके आगे तेरी
किस्मत ठहरी।

2 टिप्‍पणियां:

आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया का स्वागत है