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रविवार, 7 मार्च 2010

अलग अलग

अलग अलग रंगो की
झण्डियोँ मेँ बँट रही
एक ही अफीम-
साम्प्रदायिकता की,
और वह सच की
गुनगुनी सुनहली धूप--
जो  हरीतिमा जगाती है
पत्ते जिलाती है
फूल खिलाती है
अरे आज छन छन कर आती है
राह मेँ अडी है
घनी और ठंडी एक नीम-
राजसत्ता की।

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