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बुधवार, 3 मार्च 2010

ये परिन्दे


ये परिन्दे कतार मेँ बैठे
तीर के इन्तजार मेँ बैठे।

आशियाने हथेलियोँ पे लिए
बर्क की रहगुजार मेँ बैठे।

एक जब गिर गया थपेडोँ मेँ
डर के हम तीन - चार मेँ बैठे।

खूब तुमने मियाँ तरक्की की
घर से निकले बाजार मेँ बैठे।

हैँ बहुत इज्तिराब क्यूँ कोई
इस दिले-बेकरार मेँ बैठे।