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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

साथी पंकज मिश्र की एक कविता


मैं एंटीलिया

समय की अदालत में
सदी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुकदमा
आखिरी पेशी
सजा मुक़र्रर होनी है ,
मुकदमा
यूनियन ऑफ इंडिया
बनाम
एंटीलिया
सिर्फ
घडी की टिक टिक टिक
कैमरों की क्लिक क्लिक
एंटीलियाआआआ
हाज़िर हो....!
हाज़िर हूँ मी लार्ड ..
एंटीलिया !
अब जबकि, तुम पर आयद सारे आरोप
साबित हो चुके हैं
सजा सुनाये जाने से पहले
तुम्हे कुछ कहना है
जी ,जी हुज़ूर ,
तो ,हलफ उठाओ !
मैं एंटीलिया...
इतिहास को साक्षी मान कर कहती हूँ
कि
मैं अपने पूरे होशो हवास में ,
जो कहूँगी ,
सच कहूँगी
सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगी
मैं एंटीलिया ,हाल मुकाम ...
बयान करती हूँ ,
यह कि ,
मैं पूँजी के वैभव की
ऐश्वर्य की प्रतीक हूँ
उसके गुनाहेअज़ीम में
बाकायदा शरीक हूँ
मैं सदी के सबसे
दौलतमंद की ख्वाहिश हू
मैं किसी बेगैरत के
घमंड की नुमाइश हूँ
मैं दौलत की मशक्कत से
आजमायी हुई साज़िश हूँ
मै किसी दौलतमंद की
अजीमोशान रिहाईश हूँ
मैं दौलत की बुलंदी का
जिन्दा मुकाम हूँ
तमाम लूट ओ खसोट का
हलफिया बयान हूँ
मैं आवारा दौलत का
लहराता हुआ परचम हूँ
मैं हवस की किताब में
सोने का कलम हूँ
मैं मुल्क के सीने में दफ्न
खंज़र की मूठ हूँ
मै इस जुल्मी निजाम का
सबसे, सफ़ेद झूठ हूँ
मैं तमाम शहरियों की
हसरत हूँ , टकटकी हूँ
कितने ही मेहनतकशों की
कुर्बान जिंदगी हूँ
मैं दिलफरेब बहुत हूँ
लुभाती भी बहुत हूँ
सपनो में उनके आ के
सताती भी बहुत हूँ
मैं जागता सपना हूँ,
उनसे ,भागता सपना हूँ
प्रबंधन के विशेषज्ञों की
कोरी प्रवंचना हूँ
मैं ही, आज ताकत
सत्ता हूँ ,प्रतिष्ठा हूँ ,
इस जुल्मी हुकूमत की
नायाब सफलता हूँ
मैं कोरी औ खोखली
भावुकता को नहीं जानती
मैं सम्वेदना हो ,शील हो ,
किसी को नहीं पहचानती
मूल्यों के मकडजाल से
कब की उबर चुकी हूँ
ऐसे तमाम रास्तों से
निःसंकोच गुजर चुकी हूँ
मैं कंधे पर पाँव रख
बढ़ जाना जानती हूँ
हुक्काम की दराज में
दुबक जाना भी जानती हूँ
झगड़ना भी जानती हूँ
अकडना भी जानती हूँ
आये कोई मौका तो
पकडना भी जानती हूँ
समझौता भी जानती हूँ ,
कुचलना भी जानती हूँ
मचलना भी जानती हूँ ,
छलना भी जानतीहूँ
आघात जानती हूँ
प्रतिघात जानती हूँ
मासूम मुफ़लिसी से
विश्वासघात जानती हूँ
शातिरओमक्कार हूँ
मैं कौम की गद्दार हूँ,
मतलब की यार हूँ,
मैं कुशल फनकार हूँ
मंच से कभी तो
नेपथ्य से कभी
विभ्रम से कभी तो
असत्य से कभी
लुब्ध कर सकती हूँ ,
मुग्ध कर सकती हू
भूकम्प से बच सकती हूँ
तूफ़ान से निकल सकती हूँ
बमों की बौछार हो या ,
गोलियों की मार हो
सब को झेल सकती हू
पीछे ढकेल सकती हूँ
रेशमी अहसास हो
भोले भले जज़्बात हो
ऐसे खिलौनों को तो
चुटकी में तोड़ सकती हूँ
मै निष्ठुर हूँ, निर्लज्ज हूँ
निरंकुश हूँ ,नृशंस हूँ
मैं जज्बाती नहीं
किसी की साथी नहीं
मैं..... एंटीलिया
सिर्फ खुद से प्यार करती हूँ
सिर्फ खुद से प्यार करती हूँ
बयान पूरा हुआ ...मी लार्ड !
इस समय की अदालत में
इतिहास को साक्षी मान ,
दुरुस्त होशोहवास में
बगैर जोरोजबर
दस्तखत बना रही हूँ
ताकि सनद रहे ........
एंटी...लिया

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