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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

शिकार



धूमिल आकाश पर 
शाम जब इधर-उधर 
लाल लाल खून फ़ैल गया था ,
जान लिया था हमने 
कि रात के काले बिलार ने 
आज फिर अपना शिकार कर लिया है ! 

सहमें सिकुड़ रहे दिन औ' फूल रही रातें !

डरता हूँ 
दिन न कहीं रह जाएँ 
हल्की -सी कौंध भर 
वह भी यदा-कदा !!

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